NCERT Solutions for Class 6 Hindi Chap 3 नादान दोस्त सारांश (Naadan Dost Summary)
इस कहानी में मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) ने बच्चों के मन में उठने वाली अनेकों जिज्ञासाओं के उचित समाधान न होने की स्थिति से अवगत कराया है|
NCERT Solutions for Class 6 Hindi Chap 3
केशव और उसकी बहन श्यामा के घर में कार्निश पर चिड़िया ने अंडे दिए थे| दोनों बच्चे सुबह उठते ही चिड़िया को देखने पहुँच जाते| उन्हें चिड़ियों को देखने में न जाने क्या मजा आता की वे अपना मन पसंद नास्ता दूध जलेबी भी भूल जाते| उनके मन में अनेकों सवाल उठते, अंडे कितने बड़े होंगे? किस रंग के होंगे? क्या कहते होंगे? बच्चे कब निकलेंगे? आदि| पर माँ और पिताजी की व्यस्तता के कारण उनके प्रश्न अनुत्तरित ही रह जाते| ऐसे में वे आपस में ही बात करके उनके जवाब दे लिया करते| कुछ दिन गुजने के बाद उन्हें लगा की बच्चे निकल आए होंगे| परंतु अब धूप कुछ अधिक तेज हों लगी थी| इससे वे बच्चों के लिए अधिक चिंतित हो गए| बच्चे क्या खाते पीते होंगे? चिड़िया डेन कहाँ से लाएगी? वे बेचारे भूख-प्यास और धूप में मर जाएंगे| अत: बच्चों ने उनके लिए दाना पानी और धूप से बचाने की व्यवस्था करने का इंतजाम कर लिया| और मोके की तलाश करने लगे|
गर्मी की दोपहर होने के कारण माँ ने दोनों बच्चों को कमरे में अपने साथ सुला कर कमरा अंदर से बंद कर लिया| पर माँ के सोते ही वे दोनों चुपचाप बाहर आ गए| स्टूल, चौकी, प्याली, चावल, पानी, पुराना कपड़ा और कूड़े की टूटी डलिया का इंतजाम कर केशव ऊपर चढ़ा| वहाँ तीन अंडे थे उसने श्यामा के पूछने पर बताया| फिर कपड़े की गद्दी बनाकर अंडे उस पर रख दिए, प्याली में पानी और दाना रखा, डलिया से छाया कर दी| उसके नीचे उतरने पर श्यामा ने भी अंडे देखने के लिए कहा| केशव ने मना कर दिया कि वह स्टूल से गिर सकती है| श्यामा रोने लगी| उसने कहा कि वह माँ से बता देगी|
उसी समय माँ दरवाजा खोल कर बाहर आई | उसने पूछा तुम लोग बाहर कब आए और दरवाजा किसने खोला? केशव डर रहा था कि श्यामा बता देगी पर उसने नहीं बताया| श्यामा के शिकायत न करने के दो कारण हो सकते थे| एक की माँ केशव को डाँटेगी तो उसे अच्छा नहीं लगेगा | दूसरा वह स्वयं भी इस अपराध में शामिल थी| माँ ने दोनों को गुस्सा कर वापस कमरे में लेजाकर सुला दिया |
शाम चार बजे श्यामा की नींद खुली वह सीधे कार्निश के पास गई| उसने देखा वहाँ डलिया नहीं थी| जब नीचे देखा और दौड़ते हुए केशव के पास जा कर बताया कि अंडे टूटे पड़े हैं, बच्चे उड़ गए| केशव दौड़ता हुआ वहाँ आया| अंडे नीचे टूटे पड़े थे | उनसे चुने जैसा कुछ निकल आया था| यह देख कर वह डर गया| तभी माँ सोंटी लिए वहाँ आई| अब श्यामा ने माँ को बताया की अंडे टूट गए हैं | माँ ने पूछा तुम लोगों ने अण्डों को छुआ था क्या? अब श्यामा ने सब बता दिया | तब माँ ने बताया कि अण्डों को छूने से वे गंदे हो जाते हैं | फिर चिड़िया उन्हें नहीं सेती तोड़ देती है | यह जानकर केशव का चेहरा उतर गया| उसकी सूरत रोनी हो गई | माँ को हँसी आ गई | केशव को अपनी गलती का अहसास कई दिनों तक रहा| यह सोच कर वह कभी-कभी रो पड़ता | दोनों चिड़ियाँ फिर कभी वहाँ दिखाई नहीं दीं|
NCERT Solutions for Class 6 Hindi Chapter 3 Munshi Premchand Biography in Hindi
विषय
जानकारियाँ
नाम
मुंशी प्रेमचंद
पूरा नाम
धनपत राय
जन्म
31 जुलाई 1880
जन्म स्थल
वाराणसी के लमही गाँव मे हुआ था .
मृत्यु
8 अक्टूबर 1936
पिता
अजायब राय
माता
आनंदी देवी
भाषा
हिन्दी व उर्दू
राष्ट्रीयता
हिन्दुस्तानी
प्रमुख रचनाये
गोदान, गबन
आगे हम मुंशी प्रेमचंद जी के, सुन्दर व्यक्तित्व और सम्पूर्ण जीवन का वर्णन करेंगे .Munshi Premchand biography in hindi
Table of Contents
मुंशी प्रेमचंद जी की जीवनी (Munshi Premchand Jeevani)
31 जुलाई 1880 को , बनारस के एक छोटे से गाँव लमही मे, जहा प्रेमचंद जी का जन्म हुआ था . प्रेमचंद जी एक छोटे और सामान्य परिवार से थे . उनके दादाजी गुर सहाय राय जोकि, पटवारी थे और पिता अजायब राय जोकि, पोस्ट मास्टर थे . बचपन से ही उनका जीवन बहुत ही, संघर्षो से गुजरा था . जब प्रेमचंद जी महज आठ वर्ष की उम्र मे थे तब, एक गंभीर बीमारी मे, उनकी माता जी का देहांत हो गया .
बहुत कम उम्र मे, माताजी के देहांत हो जाने से, प्रेमचंद जी को, बचपन से ही माता–पिता का प्यार नही मिल पाया . सरकारी नौकरी के चलते, पिताजी का तबादला गौरखपुर हुआ और, कुछ समय बाद पिताजी ने दूसरा विवाह कर लिया . सौतेली माता ने कभी प्रेमचंद जी को, पूर्ण रूप से नही अपनाया . उनका बचपन से ही हिन्दी की तरफ, एक अलग ही लगाव था . जिसके लिये उन्होंने स्वयं प्रयास करना प्रारंभ किया, और छोटे-छोटे उपन्यास से इसकी शुरूवात की . अपनी रूचि के अनुसार, छोटे-छोटे उपन्यास पढ़ा करते थे . पढ़ने की इसी रूचि के साथ उन्होंने, एक पुस्तकों के थोक व्यापारी के यहा पर, नौकरी करना प्रारंभ कर दिया .
जिससे वह अपना पूरा दिन, पुस्तक पढ़ने के अपने इस शौक को भी पूरा करते रहे . प्रेमचंद जी बहुत ही सरल और सहज स्वभाव के, दयालु प्रवत्ति के थे . कभी किसी से बिना बात बहस नही करते थे, दुसरो की मदद के लिये सदा तत्पर रहते थे . ईश्वर के प्रति अपार श्रध्दा रखते थे . घर की तंगी को दूर करने के लिये, सबसे प्रारंभ मे एक वकील के यहा, पांच रूपये मासिक वेतन पर नौकरी की . धीरे-धीरे उन्होंने खुद को हर विषय मे पारंगत किया, जिसका फायदा उन्हें आगे जाकर मिला ,एक अच्छी नौकरी के रूप मे मिला . और एक मिशनरी विद्यालय के प्रधानाचार्य के रूप मे, नियुक्त किये गये . हर तरह का संघर्ष उन्होंने, हँसते – हँसते किया और अंत मे, 8 अक्टूबर 1936 को अपनी अंतिम सास ली .
मुंशी प्रेमचंद की शिक्षा (Munshi Premchand Education)
प्रेमचंद जी की प्रारम्भिक शिक्षा, सात साल की उम्र से, अपने ही गाँव लमही के, एक छोटे से मदरसा से शुरू हुई थी . मदरसा मे रह कर, उन्होंने हिन्दी के साथ उर्दू व थोडा बहुत अंग्रेजी भाषा का भी ज्ञान प्राप्त किया .
ऐसे करते हुए धीरे-धीरे स्वयं के, बल-बूते पर उन्होंने अपनी शिक्षा को आगे बढाया, और आगे स्नातक की पढ़ाई के लिये , बनारस के एक कालेज मे दाखिला लिया . पैसो की तंगी के चलते अपनी पढ़ाई बीच मे ही छोड़नी पड़ी . बड़ी कठिनाईयों से जैसे-तैसे मैट्रिक पास की थी . परन्तु उन्होंने जीवन के किसी पढ़ाव पर हार नही मानी, और 1919 मे फिर से अध्ययन कर बी.ए की डिग्री प्राप्त करी .
मुंशी प्रेमचंद का विवाह (Munshi Premchand marriage)
प्रेमचंद जी बचपन से, किस्मत की लड़ाई से लड़ रहे थे . कभी परिवार का लाड-प्यार और सुख ठीक से प्राप्त नही हुआ . पुराने रिवाजो के चलते, पिताजी के दबाव मे आकर , बहुत ही कम उम्र मे पन्द्रह वर्ष की उम्र मे उनका विवाह हो गया . प्रेमचंद जी का यह विवाह उनकी मर्जी के बिना , उनसे बिना पूछे एक ऐसी कन्या से हुआ जोकि, स्वभाव मे बहुत ही झगड़ालू प्रवति की और, बदसूरत सी थी . पिताजी ने सिर्फ अमीर परिवार की कन्या को देख कर, विवाह कर दिया .
थोड़े समय मे, पिताजी की भी मृत्यु हो गयी, पूरा भार प्रेमचंद जी पर आ गया . एक समय ऐसा आया कि, उनको नौकरी के बाद भी जरुरत के समय अपनी बहुमूल्य वास्तुओ को बेच कर, घर चलाना पड़ा . बहुत कम उम्र मे ग्रहस्थी का पूरा बोझ अकेले पर आ गया . उसके चलते प्रेमचंद की प्रथम पत्नी से, उनकी बिल्कुल नही जमती थी जिसके चलते उन्होंने उसे तलाक दे दिया. और कुछ समय गुजर जाने के बाद, अपनी पसंद से दूसरा विवाह , लगभग पच्चीस साल की उम्र मे एक विधवा स्त्री से किया . प्रेमचंद जी का दूसरा विवाह बहुत ही संपन्न रहा उन्हें इसके बाद, दिनों दिन तरक्की मिलती गई .
मुंशी प्रेमचंद की कार्यशैली
प्रेमचंद जी अपने कार्यो को लेकर, बचपन से ही सक्रीय थे . बहुत कठिनाईयों के बावजूद भी उन्होंने, आखरी समय तक हार नही मानी . और अंतिम क्षण तक कुछ ना कुछ करते रहे, और हिन्दी ही नही उर्दू मे भी, अपनी अमूल्य लेखन छोड़ कर गये .
लमही गाँव छोड़ देने के बाद, कम से कम चार साल वह कानपुर मे रहे, और वही रह कर एक पत्रिका के संपादक से मुलाकात करी, और कई लेख और कहानियों को प्रकाशित कराया . इस बीच स्वतंत्रता आदोलन के लिये भी कई कविताएँ लिखी .
धीरे-धीरे उनकी कहानियों,कविताओं, लेख आदि को लोगो की तरफ से, बहुत सरहाना मिलने लगी . जिसके चलते उनकी पदोन्नति हुई, और गौरखपुर तबादला हो गया . यहा भी लगातार एक के बाद एक प्रकाशन आते रहे, इस बीच उन्होंने महात्मा गाँधी के आदोलनो मे भी, उनका साथ देकर अपनी सक्रीय भागीदारी रखी . उनके कुछ उपन्यास हिन्दी मे तो, कुछ उर्दू मे प्रकाशित हुए .
उन्नीस सौ इक्कीस मे अपनी पत्नी से, सलाह करने के बाद उन्होंने, बनारस आकर सरकारी नौकरी छोड़ने का निर्णय ले लिया . और अपनी रूचि के अनुसार लेखन पर ध्यान दिया . एक समय के बाद अपनी लेखन रूचि मे, नया बदलाव लाने के लिये उन्होंने सिनेमा जगत मे, अपनी किस्मत अजमाने पर जोर दिया, और वह मुंबई पहुच गये और, कुछ फिल्मो की स्क्रिप्ट भी लिखी परन्तु , किस्मत ने साथ नही दिया और, वह फ़िल्म पूरी नही बन पाई . जिससे प्रेमचंद जी को नुकसानी उठानी पड़ी और, आख़िरकार उन्होंने मुंबई छोड़ने का निर्णय लिया और, पुनः बनारस आगये . इस तरह जीवन मे, हर एक प्रयास और मेहनत कर उन्होंने आखरी सास तक प्रयत्न किये
प्रेमचंद जी की प्रमुख रचनाओ के नाम (Munshi Premchand creations Name)
देखा जाये तो, मुंशी प्रेमचंद जी की सभी रचनाये प्रमुख थी . किसी को भी अलग से, संबोधित नही किया जा सकता . और उन्होंने हर तरह की अनेको रचनाये लिखी थी जो, हम बचपन से हिन्दी मे पढ़ते आ रहे है ठीक ऐसे ही, उनके कई उपन्यास नाटक कविताएँ कहानियाँ और लेख हिन्दी साहित्य मे दिये गये है . जैसे- गोदान,गबन,कफ़न आदि अनगिनत रचनाये लिखी है .
मुंशी प्रेमचंद द्वारा कथित कथन व अनमोल वचन (Munshi Premchand Quotes in hindi)
वे एक ऐसे व्यक्ति थे जो, अपनी रचनाओ मे बहुत ही स्पष्ट और कटु भाषाओं का उपयोग करते थे . उन्होंने ऐसे कथन हिन्दी और अन्य भाषाओ मे लिखे थे जोकि, लोगो के लिये प्रेरणा स्त्रोत बन जाते थे . उनमे से कुछ कथन हम नीचे दे रहे है .
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