NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 13 Teesri Kasam Ke Shilpkar Shailendra
तीसरी कसम के शिल्पकार : शैलेंद्र
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
मौखिक
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-
प्रश्न 1. ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को कौन-कौन से पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है?
उत्तर- ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को निम्नलिखित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है –
1. राष्ट्रपति स्वर्णपदक से सम्मानित।
2. बंगाल फ़िल्म जर्नलिस्ट एसोसिएशन द्वारा सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म को पुरस्कार।
3. मास्को फ़िल्म फेस्टिवल में भी यह पुरस्कृत हुई।
प्रश्न 2. शैलेंद्र ने कितनी फ़िल्में बनाई?
उत्तर- शैलेंद्र ने अपने पुरे जीवन में सिर्फ एक फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ बनाई थी।
प्रश्न 3. राजकपूर द्वारा निर्देशित कुछ फ़िल्मों के नाम बताइए।
उत्तर- राजकपूर द्वारा निर्देशित कुछ फ़िल्मों के नाम इस प्रकार हैं –
1. ‘मेरा नाम जोकर’
2. ‘अजन्ता’
3. ‘मैं और मेरा दोस्त’
4. ‘सत्यम् शिवम् सुंदरम्’
5. ‘संगम’
6. ‘प्रेमरोग’ आदि।
प्रश्न 4. ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म के नायक व नायिकाओं के नाम बताइए और फ़िल्म में इन्होंने किन पात्रों का अभिनय किया है?
उत्तर- ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म के नायक राजकपूर और नायिका वहीदा रहमान थी। राजकपूर ने हीरामन गाड़ीवान का अभिनय किया है और वहीदा रहमान ने नौटंकी कलाकार ‘हीराबाई’ का अभिनय किया था।
प्रश्न 5. फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ का निर्माण किसने किया था?
उत्तर- कवि शैलेंद्र ने।
प्रश्न 6. राजकपूर ने ‘मेरा नाम जोकर’ के निर्माण के समय किस बात की कल्पना भी नहीं की थी?
उत्तर- राजकपूर ने ‘मेरा नाम जोकर’ के निर्माण के समय यह कल्पना भी नहीं की थी कि फ़िल्म के सिर्फ पहले भाग को बनाने में ही छह साल का समय लग जाएगा।
प्रश्न 7. राजकपूर की किस बात पर शैलेंद्र का चेहरा मुरझा गया?
उत्तर- राजकपूर ने जब ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म में काम करने के लिए अपनी एक शर्त ‘फिल्म का पूरा पारिश्रमिक एडवांस में देना होगा’, शैलेंद्र के सामने रखी। इस बात पर शैलेंद्र का चेहरा मुरझा गया।
प्रश्न 8. फ़िल्म समीक्षक राजकपूर को किस तरह का कलाकार मानते थे?
उत्तर- फ़िल्म समीक्षक राजकपूर को आँखों से बात करने वाला कुशल कलाकार और कला-मर्मज्ञ मानते थे।
लिखित
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(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-
प्रश्न 1. ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को ‘सैल्यूलाइड पर लिखी कविता’ क्यों कहा गया है?
उत्तर- ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को सैल्यूलाइड पर लिखी कविता इसलिए कहा गया है, क्योंकि यह एक ऐसी फ़िल्म है, जिसमें फणीश्वर नाथ रेणु की मार्मिक कृति ‘तीसरी कसम’ को किसी कविता की तरह उसकी पूरी मार्मिकता, संवेदना की सूक्ष्म गहराई के साथ सिनेमा के परदे पर प्रदर्शित किया गया था।
प्रश्न 2. ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को खरीददार क्यों नहीं मिल रहे थे?
उत्तर – ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को खरीददार इसलिए नहीं मिल रहे थे क्योकि इस फिल्म में दर्शको को लुभाने, उनकी भावनाओं का शोषण करने वाले किसी भी प्रकार मसालों का प्रयोग नहीं किया गया था। खरददारों को फिल्म की संवेदना समझ में नहीं आई।उन्हें डर था कि बिना किसी मसाले की इस फिल्म को खरीदने के बाद पैसे कैसे वसूल होंगे ? फ़िल्म वितरकों को उसके साहित्यिक महत्त्व और गौरव से कोई मतलब नहीं था।
प्रश्न 3. शैलेंद्र के अनुसार कलाकार का कर्तव्य क्या है?
उत्तर- शैलेंद्र के अनुसार कलाकार का कर्तव्य है कि वह उपभोक्ताओं की रुचियों को परिष्कार-संस्कार करे, उन्हें ऊँचा उठाए। वह दर्शक की रुचियों की आड़ में स्वयं को सस्ता न करें।
प्रश्न 4. फ़िल्मों में त्रासद स्थितियों का चित्रांकन ग्लोरिफाई क्यों कर दिया जाता है?
उत्तर- फ़िल्मों में त्रासद स्थितियों का चित्रांकन ग्लोरिफाई इसलिए किया जाता है ताकि दर्शक उन्हें देखने की लालसा में फिल्म देखने आएँ और फिल्म खूब बिके। जिससे वह दर्शकों का भावनात्मक शोषण कर सकें। इससे उनके द्वारा खर्च किया गया एक-एक पैसा वसूल वसूल करने में सफलता मिलती है।
प्रश्न 5. ‘शैलेंद्र ने राजकपूर की भावनाओं को शब्द दिए हैं’- इस कथन से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- हम इस बात से पूरी तरह सहमत हैं कि ‘शैलेंद्र ने राजकपूर की भावनाओं को शब्द दिए हैं। राजकपूर जो कुछ कहना चाहते थे , उसे शैलेंद्र ने शब्दों के माध्यम से प्रकट किया है। राजकपूर अपनी भावनाओं को आँखों के द्वारा व्यक्त करने में कुशल थे। उन भावों को संवादों और गीतों में ढालने का काम शैलेंद्र ने किया। शैलेन्द्र ने यह फिल्म बनाकर मनो राजकपूर की भावनाओं को वाणी दी थी।
प्रश्न 6. लेखक ने राजकपूर को एशिया का सबसे बड़ा शोमैन कहा है। शोमैन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- शोमैन का अर्थ है- विख्यात प्रतिनिधि-आकर्षक व्यक्तित्व। ऐसा व्यक्ति जो बहुत अधिक लोकप्रिय हो और मानवीय भावनाओं की दर्शनीय प्रस्तुति कर सके। अपने कला-गुण, व्यक्तित्व तथा आकर्षण के कारण सब जगह प्रसिद्ध हो। जिसके नाम से ही फिल्म बिकती हो। राजकपूर अपने समय के एक महान फ़िल्मकार और कलाकार थे। भारत ही नहीं समूचे एशिया में उनके द्वारा निर्देशित और अभिनीत अनेक फ़िल्में प्रदर्शित हो चुकीं थीं। वे एक सर्वाधिक लोकप्रिय निर्देशक व अभिनेता थे। उनका अभिनय जीवंत था तथा दर्शकों के हृदय छू लेने वाला होता था। राजकपूर की धूम भारत के बाहर देशों में भी थी। रूस में तो नेहरू के बाद लोग राजकपूर को ही सबसे ज्यादा लोकप्रिय थे।
प्रश्न 7. फ़िल्म ‘श्री 420′ के गीत ‘रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ’ पर संगीतकार जयकिशन ने आपत्ति क्यों की?
उत्तर- फ़िल्म ‘श्री 420′ के गीत ‘रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ’ पर संगीतकार जयकिशन ने गीत में प्रयुक्त ‘रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ’ पर आपत्ति जताई थी। उनका मानना था कि दर्शक ‘चार दिशाएँ’ तो समझते हैं और समझ सकते हैं, लेकिन ‘दस दिशाओं’ का गहन ज्ञान दर्शकों को नहीं होगा। इसलिए यहाँ चार दिशाएँ आना चाहिए।
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(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-
प्रश्न 1. राजकपूर द्वारा फ़िल्म की असफलता के खतरों से आगाह करने पर भी शैलेंद्र ने यह फ़िल्म क्यों बनाई?
उत्तर- राजकपूर एक बड़े फ़िल्म-निर्माता सफल अभिनेता, कुशल निर्देशक और शैलेंद्र के मित्र थे। वे फिल्म बनाने के खतरों से भली-भांति परिचित थे। शैलेंद्र ने ‘तीसरी कसम’ फिल्म बनाने की इच्छा प्रकट की तब राजकपूर ने एक सच्चे मित्र की तरह शैलेंद्र को फ़िल्म की असफलता के खतरों से आगाह करना अपना कर्तव्य समझा। लेकिन शैलेंद्र ने फिर भी तीसरी कसम फिल्म बनाई। वे तो एक भावुक-ह्रदय कवि थे। वे यश और धन लिप्सा दूर थे। वे इस फिल्म का निर्माण अपनी आत्म-संतुष्टि के लिए करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने खतरा उठा कर भी यह फिल्म बनाई।
प्रश्न 2. ‘तीसरी कसम’ में राजकपूर का महिमामय व्यक्तित्व किस तरह हीरामन की आत्मा में उतर गया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- ‘तीसरी कसम’ में राजकपूर का महिमामय व्यक्तित्व पूरी तरह हीरामन की आत्मा में उतर गया है। इसका आशय यह है कि राजकपूर और हिरामन दोनों एकाकार हो गए हैं। राजकपूर एक महान कलाकार थे। उनहोंने फ़िल्म के पात्र हिरामन के अनुरूप अपने महिमामय व्यक्तित्व को समेत कर पूरी तरह एक भोले-भले देहाती के रूप में ढाल दिया था। इस फ़िल्म में एक शुद्ध देहाती जैसा अभिनय जिस प्रकार से राजकपूर ने किया है, वह अद्वितीय है। एक गाड़ीवान की सरलता, नौटंकी की बाई में अपनापन खोजना, हीराबाई पर रीझना, उसकी भोली सूरत पर न्योछावर होना और हीराबाई की तनिक-सी उपेक्षा पर अपने अस्तित्व से जूझना जैसी हीरामन की भावनाओं को राजकपूर ने बड़े सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है। तीसरी कसम में राजकपूर कहीं भी अभिनेता राजकपूर नहीं दिखते बल्कि पूरी तरह से हीरामन हो गए हैं। ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म में राजकपूर का पूरा व्यक्तित्व ही जैसे हीरामन की आत्मा में उतर गया है।
प्रश्न 3. लेखक ने ऐसा क्यों लिखा है कि ‘तीसरी कसम’ ने साहित्य-रचना के साथ शत-प्रतिशत न्याय किया है?
उत्तर- लेखक ने ऐसा इसलिए लिखा है क्योंकि ‘तीसरी कसम’ फिल्म को लेखक फणीश्वरनाथ रेणु की मूल कहानी के अनुरूप ही बनाया गया है। इसकी पटकथा भी शैलेंद्र ने फणीश्वरनाथ रेणु से ही लिखवाई थी, जिससे उस कहानी के मूल भावों में कोई बदलाव न हो। साहित्य-रचना के साथ पूरी तरह से न्याय किया जा सके। और शैलेंद्र ने यह शत-प्रतिशत कर दिखाया। कहानी के भाव को बड़ी ही बारीकी से फिल्म में उतारा गया। कहानी की मूल आत्मा को पूरी तरह से सुरक्षित रखा गया। इस तरह पश्न में कही गई बात फिल्म तीसरी कसम पर पूरी तरह सिद्ध होती है।
प्रश्न 4. शैलेंद्र के गीतों की क्या विशेषता है? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- शैलेंद्र एक सफल कवि और गीतकार थे। उनके गीत अत्यंत भाव पूर्ण थे। वे धनोर यश की लालच में स्तरहीन गीत नहीं लिखते थे। उनके गीतों अनेक विशेषताएँ लिए हुए होते थे। उनके गीतों की भाषा अत्यंत सरल, सहज होने के साथ-साथ अर्थ की गहराइयाँ लिए हुए रहती। दिल की गहराइयों से निकले उनके गीत सहजता से पाठकोर श्रोता के हृदय में उतर जाते थे। उनके गीत दिखावों और आडम्बरों से दूर यथार्त को श्रोता के सामने रख देते थे इस कारन वे आसानी से श्रोता की संवेदना को छू लेते थे और लोकप्रिय हो जाते थे। उनके गीतों में करुणा, संवेदना इत्यादि के भाव सहज ही दिखा जाते हैं।
प्रश्न 5. फ़िल्म निर्माता के रूप में शैलेंद्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर- फ़िल्म निर्माता के रूप में तीसरी कसम शैलेंद्र की पहली और अंतिम फिल्म थी। उन्होंने इस फिल्म का निर्माण यश अथवा धनोपार्जन के लिए नहीं किया था।
वरन एक साहित्यिक कृति को उसकी समस्त संवेदनाओं के साथ रुपहले परदे पर उतरने के लिए किया था। वे इस फिल्म के निर्माता तो थे पर उनके अंदर एक कवी ह्रदय हमेशा मौजूद रहा। यही कवी ह्रदय पूरी तीसरी कसम फिल्म में दिखाई देता है। इस कारण समीक्षकों ने इस फिल्मा को सेलुलाइड पर लिखी गई कविता कहा था। एक फ़िल्म निर्माता के रूप में शैलेंद्र की यही विशेषताएँ हैं।
प्रश्न 6. शैलेंद्र के निजी जीवन की छाप उनकी फ़िल्म में झलकती है-कैसे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- शैलेंद्र अपने निजी जीवन में एक यथार्थवादी, संवेदनशील और भावुक कवि थे। उन्होंने अपने जीवन में सिर्फ एक फिल्म तीसरी कसम का निर्माण किया था। यह फिल्म ह्रदय में उतर जाने वाली संवेदनाओं और भावों से भरी हुई थी। फिल्म में उनके कवि जीवन की समस्त विशेषताऐं प्रदर्शित हुई हैं। सरल हृदयी और भोला-भाला हीरामन जो केवल दिल की जुबान समझता है, दिमाग की नहीं। वह सीधे-सादे प्रेम के सिवा और कुछ नहीं समझता। इसी तरह शैलेंद्र भी यश और धनलिप्सा से दूर थे। वे अपने जीवन में भी दुख को सहज रूप से जी लेते थे। वे दुख से घबराकर उससे दूर नहीं भागते थे। इस प्रकार स्पष्ट है कि शैलेंद्र के निजी जीवन की छाप उनकी फ़िल्म में झलकती है।
प्रश्न 7. लेखक के इस कथन से कि ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म कोई सच्चा कवि-हृदय ही बना सकता था, आप कहाँ तक सहमत हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- लेखक के इस कथन से कि ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म कोई कवि हृदय ही बना सकता था-से मैं पूरी तरह से सहमत हूँ। क्योंकि शैलेंद्र एक संवेदनशील व भावुक कवी थे। उनके कवी ह्रदय की यही संवेदना और भावुकता उनकी फिल्म तीसरी कसम में प्रदर्शित होती है। ऐसे ही विचारों से भरी हुई ‘तीसरी कसम’ एक ऐसी फ़िल्म है, जिसमें न केवल दर्शकों की रुचियों को ध्यान रखा गया है, बल्कि उनकी गलत रुचियों को परिष्कृत (सुधारने) करने की भी कोशिश की गई है।
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(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-
प्रश्न 1. …. वह तो एक आदर्शवादी भावुक कवि था, जिसे अपार संपत्ति और यश तक की इतनी कामना नहीं थी जितनी आत्मसंतुष्टि के सुख की अभिलाषा थी।
उत्तर- उपरोक्त पंक्ति का आशय यह है कि शैलेंद्र ‘तीसरी कसम’ फिल्म का निर्माण धन अथवा यस के लिए नहीं किया था। वे एक आदर्शवादी भावुक हृदय कवि थे। उन्हें धन और यश प्राप्ति की तनिक भी चाहत नहीं थी। उन्होंने राजकपूर द्वारा इस फिल्म के निर्माण के खतरों से आगाह किए जाने के बाद भी इसका निर्माण किया। वे यह बात भली-भाँति जानते थे कि इस फिल्म के लिए उन्हें वितरक और दर्शक बमुश्किल ही मिल सकेंगे। इन सारे खतरों को उठा कर उन्होंने अपनी पूरी संवेदनाओं और भावुकता के साथ आत्म संतोष के लिए इस फिल्म तीसरी कसम का निर्माण सफलता पूर्वक किया।
प्रश्न 2. उनका यह दृढ़ मंतव्य था कि दर्शकों की रुचि की आड़ में हमें उथलेपन को उन पर नहीं थोपना चाहिए। कलाकार का यह कर्तव्य भी है कि वह उपभोक्ता की रुचियों का परिष्कार करने का प्रयत्न करे।
उत्तर- उपरोक्त पंक्ति का आशय यह है कि एक कलाकार समाज के प्रति सामान्य जान की अपेक्षा अधिक जिम्मेदार होता है। वह धनोपार्जन के लालच में दर्शकों की रूचि की आड़ लेकर उनपर घटिया और उथली भावनाओं को नहीं थोप सकता। कलाकार से समाज में हर वर्ग के लोग प्रभावित होते हैं। इससे उसका दायित्व और बढ़ जाता है। उनका मानना है कि कलाकार को मनोरंजन के साथ-साथ दर्शकों की पसंद और सोच का परिष्कार करना चाहिए। जिससे वह समाज में सकारात्मक सोच और बदलाव लाने में सक्ष्म हो सके।
प्रश्न 3. व्यथा आदमी को पराजित नहीं करती, उसे आगे बढ़ने का संदेश देती है।
उत्तर- उपरोक्त पंक्ति का आशय यह है कि व्यथा, पीड़ा, दुख आदि व्यक्ति को कमज़ोर या हतोत्साहित अवश्य कर देते हैं, लेकिन उसे पराजित नहीं करते बल्कि उसे मजबूत बनाकर आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं। हर व्यथा आदमी को जीवन की एक नई सीख देती है। व्यथा की कोख से ही तो सुख का जन्म होता है इसलिए व्यथा के बाद, दुख के बाद आने वाला सुख अधिक सुखकारी होता है।
प्रश्न 4. दरअसल इस फ़िल्म की संवेदना किसी दो से चार बनाने वाले की समझ से परे है।
उत्तर- उपरोक्त पंक्ति का आशय यह है कि ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म गहरी संवेदनशीलता तथा भावनात्मकता से भरी हुई थी। इसे अच्छी रुचियों वाले सहृदय और कलात्मक व्यक्ति ही समझने और इसे सराहने की क्षमता रखते थे। शैलेंद्र एक सच्चे अर्थ में संवेदनशील और भावुक कवि थे। धन और यश की लालशा उन्हें छू भी नहीं पाई थी। इस फ़िल्म निर्माण के पीछे भी उनके मन में धन और यश प्राप्त करने की जरा भी चाहत नहीं थी। इसीलिए इस फिल्म निर्माण के तमाम खतरों को जानने के बाद भी उन्होंने इसका निर्माण पूरी ईमानदारी और संवेदना के साथ किया।
प्रश्न 5. उनके गीत भाव-प्रवण थे- दुरूह नहीं।
उत्तर- उपरोक्त पंक्ति का आशय यह है कि शैलेंद्र ने अनेक फिल्मों के लिए अनेक गीत लिखे थे। वे सभी गीत दर्शकों और श्रोताओं द्वारा बहुत पसंद किए गए। इसका प्रमुख कारण इन गीतों की सरल,सहज और भाव प्रवण थी। इस खासियत की वजह से वे श्रोता के मन में आसानी से उतर जाते थे। ये गीत श्रोताओं के मन में बस जाते थे जिन्हें वे अनायास ही गुनगुनाने लगते।
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भाषा अध्ययन
प्रश्न 1.पाठ में आए ‘से’ के विभिन्न प्रयोगों से वाक्य की संरचना को समझिए।
- राजकपूर ने एक अच्छे और सच्चे मित्र की हैसियत से शैलेंद्र को फ़िल्म की असफलता के खतरों से आगाह भी किया।
- रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ।
- फ़िल्म इंडस्ट्री में रहते हुए भी वहाँ के तौर-तरीकों से नावाकिफ़ थे।
- दरअसल इस फ़िल्म की संवेदना किसी दो से चार बनाने के गणित जानने वाले की समझ से परे थी।
- शैलेंद्र राजकपूर की इस याराना दोस्ती से परिचित तो थे।
उत्तर- विद्यार्थी स्वयं समझें।
प्रश्न 2. इस पाठ में आए निम्नलिखित वाक्यों की संरचना पर ध्यान दीजिए-
- ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म नहीं, सैल्यूलाइड पर लिखी कविता थी।
- उन्होंने ऐसी फ़िल्म बनाई थी जिसे सच्चा कवि-हृदय ही बना सकता था।
- फ़िल्म कब आई, कब चली गई, मालूम ही नहीं पड़ा।
- खालिस देहाती भुच्चे गाड़ीवान जो सिर्फ दिल की जुबान समझता है, दिमाग की नहीं।
उत्तर- विद्यार्थी वाक्यों की संरचना पर स्वयं ध्यान दें।
प्रश्न 3. पाठ में आए निम्नलिखित मुहावरों से वाक्य बनाइए-
चेहरा मुरझाना, चक्कर खा जाना, दो से चार बनाना, आँखों से बोलना
उत्तर- मुहावरा – वाक्य प्रयोग
चेहरा मुरझाना – आतंकियों ने जैसे ही अपने एरिया कमांडर की मौत की बात सुनी उनके चेहरे मुरझा गए।
चक्कर खा जाना – क्लर्क के घर एक करोड़ की नकदी पाकर सी०बी०आई० अधिकारी भी चक्कर खा गए।
दो से चार बनाना – आई०पी०एल० दो से चार बनाने का खेल सिद्ध हो रहा है।
आँखों से बोलना – मीना कुमारी का अभिनय देखकर लगता था कि वे आँखों से बोल रही हैं।
प्रश्न 4. निम्नलिखित शब्दों के हिंदी पर्याय दीजिए-
- शिद्दत – …….
- याराना – ……….
- बमुश्किल – ………
- खालिस – ………..
- नावाकिफ़ – ……..
- यकीन – …………
- हावी – …………
- रेशा – ……….
उत्तर-
- शिद्दत – श्रद्धा
- याराना – मित्रता
- बमुश्किल – कठिनाई से
- खालिस – शुद्ध
- नावाकिफ़ – अनभिज्ञ
- यकीन – विश्वास
- हावी – आक्रामक
- रेशा – पतले-पतले धागे
प्रश्न 5. निम्नलिखित संधि विच्छेद कीजिए-
- चित्रांकन – ……… + ………
- सर्वोत्कृष्ट – ………. + ………..
- चर्मोत्कर्ष – ………… + ………….
- रूपांतरण – ……….. + ………….
- घनानंद – ………… + …………..
उत्तर-
- चित्रांकन – चित्र + अंकन
- सर्वोत्कृष्ट – सर्व + उत्कर्ष
- चर्मोत्कर्ष – चर्म + उत्कर्ष
- रूपांतरण – रूप + अंतरण
- घनानंद – घन + आनंद
प्रश्न 6. निम्नलिखित का समास विग्रह कीजिए और समास का नाम भी लिखिए-
(क) कला-मर्मज्ञ
(ख) लोकप्रिय
(ग) राष्ट्रपति
उत्तर-
समस्तपद | विग्रह | समास का नाम |
(क) कला-मर्मज्ञ | कला का मर्मज्ञ | संबंध तत्पुरुष समास |
(ख) लोकप्रिय | लोक में प्रिय | अधिकरण तत्पुरुष समास |
(ग) राष्ट्रपति | राष्ट्र का पति | संबंध तत्पुरुष समास |
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योग्यता विस्तार
प्रश्न 1. फणीश्वरनाथ रेणु की किस कहानी पर ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म आधारित है, जानकारी प्राप्त कीजिए और मूल रचना पढ़िए।
उत्तर- विद्यार्थी स्वयं पढ़ें।
प्रश्न 2. समाचार पत्रों में फ़िल्मों की समीक्षा दी जाती है। किन्हीं तीन फ़िल्मों की समीक्षा पढ़िए और तीसरी कसम’ फ़िल्म को देखकर इस फ़िल्म की समीक्षा स्वयं लिखने का प्रयास कीजिए।
उत्तर- विद्यार्थी स्वयं पढ़ें।
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परियोजना कार्य
प्रश्न 1. फ़िल्मों के संदर्भ में आपने अकसर यह सुना होगा-‘जो बात पहले की फ़िल्मों में थी, वह अब कहाँ’। वतर्ममान दौर की फ़िल्मों और पहले की फ़िल्मों में क्या समानता और अंतर है? कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर- विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 2. ‘तीसरी कसम’ जैसी और भी फ़िल्में हैं, जो किसी न किसी भाषा की साहित्यिक रचना पर बनी हैं। ऐसी फ़िल्मों की सूची निम्नांकित प्रपत्र के आधार पर तैयार करें।
उत्तर-
प्रश्न 3. लोकगीत हमें अपनी संस्कृति से जोड़ते हैं। तीसरी कसम’ फ़िल्म में लोकगीतों का प्रयोग किया गया है। आप भी अपने क्षेत्र के प्रचलित दो-तीन लोकगीतों को एकत्र कर परियोजना कॉपी पर लिखिए।
उत्तर- विद्यार्थी स्वयं करें।
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अन्य पाठेतर हल प्रश्न
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. संगम की सफलता से उत्साहित राजकपूर ने कन-सा कदम उठाया?
उत्तर- राजकपूर को संगम फ़िल्म से अद्भुत सफलता मिली। इससे उत्साहित होकर उन्होंने एक साथ चार फ़िल्मों के निर्माण की घोषणा की। ये फ़िल्में थीं-अजंता, मेरा नाम जोकर, मैं और मेरा दोस्त, सत्यम् शिवम् सुंदरम्।
प्रश्न 2. राजकपूर ने शैलेंद्र के साथ अपनी मित्रता ? निर्वाह कैसे किया?
उत्तर- राजकपूर ने अपने मित्र शैलेंद्र की फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ में पूरी तन्मयता से काम किया। इस काम के बदले उन्होंने किसी प्रकार के पारिश्रमिक की अपेक्षा नहीं की। उन्होंने मात्र एक रुपया एडवांस लेकर काम किया और मित्रता का निर्वाह किया।
प्रश्न 3. एक निर्माता के रूप में बड़े व्यावसायिक सा- युवा भी चकर क्यों खा जाते हैं?
उत्तर- एक निर्माता जब फ़िल्म बनाता है तो उसका लक्ष्य होता है फ़िल्म अधिकाधिक लोगों को पसंद आए और लोग उसे बार बार देखें, तभी उसे अच्छी आय होगी। इसके लिए वे हर तरह के हथकंडे अपनाते हैं फिर भी फ़िल्म नहीं चलती और वे चक्कर खा जाते हैं।
प्रश्न 4. राजकपूर ने शैलेंद्र के साथ किस तरह यारउन्ना मस्ती की ?
उत्तर- गीतकार शैलेंद्र जब अपने मित्र राजकपूर के पास फ़िल्म में काम करने का अनुरोध करने गए तो राजकपूर ने हाँ कह दिया, परंतु साथ ही यह भी कह दिया कि ‘निकालो मेरा पूरा एडवांस।’ फिर उन्होंने हँसते हुए एक रुपया एडवांस माँगा। एडवांस माँग कर राजकपूर ने शैलेंद्र के साथ याराना मस्ती की।
प्रश्न 5. शैलेंद्र ने अच्छी फ़िल्म बनाने के लिए दवा किया?
उत्तर- शैलेंद्र ने अच्छी फ़िल्म बनाने के लिए राजकपूर और वहीदा रहमान जैसे श्रेष्ठ कलाकारों को लिया। इसके अलावा उन्होंने फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ की मार्मिक कृति ‘तीसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम’ की कहानी को पटकथा बनाकर सैल्यूलाइड पर पूरी सार्थकता से उतारा।
प्रश्न 6. ‘तीसरी कसम’ जैसी फ़िल्म बनाने के पीछे शैलेंद्र की मंशा क्या थी?
उत्तर- शैलेंद्र कवि हृदय रखने वाले गीतकार थे। तीसरी कसम बनाने के पीछे उनकी मंशा यश या धनलिप्सा न थी। आत्म संतुष्टि के लिए ही उन्होंने फ़िल्म बनाई।
प्रश्न 7. शैलेंद्र द्वारा बनाई गई फ़िल्म चल रहीं, इसके कारण क्या थे?
उत्तर- तीसरी कसम संवेदनापूर्ण भाव-प्रणव फ़िल्म थी। संवेदना और भावों की यह समझ पैसा कमाने वालों की समझ से बाहर होती है। ऐसे लोगों का उद्देश्य अधिकाधिक लाभ कमाना होता है। तीसरी कसम फ़िल्म में रची-बसी करुणा अनुभूति की। चीज़ थी। ऐसी फ़िल्म के खरीददार और वितरक कम मिलने से यह फ़िल्म चले न सकी।
प्रश्न 8. ‘रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी नयाँ’ इस पंक्ति के रेखांकित अंश पर किसे आपत्ति थी और क्यों ?
उत्तर- रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ’ पंक्ति के दसों दिशाओं पर संगीतकार शंकर जयकिशन को आपत्ति थी। उनका मानना था कि जन साधारण तो चार दिशाएँ ही जानता-समझता है, दस दिशाएँ नहीं। इसका असर फ़िल्म और गीत की लोकप्रियता पर पड़ने की आशंका से उन्होंने ऐसा किया।
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दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. ‘तीसरी कसम’ में राजकपूर और वहीदा रहमान का अभिनय लाजवाब था। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- जिस समय फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ के लिए राजकपूर ने काम करने के लिए हामी भरी वे अभिनय के लिए प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय हो गए थे। इस फ़िल्म में राजकपूर ने ‘हीरामन’ नामक देहाती गाड़ीवान की भूमिका निभाई थी। फ़िल्म में राजकपूर का अभिनय इतना सशक्त था कि हीरामन में कहीं भी राजकपूर नज़र नहीं आए। इसी प्रकार छींट की सस्ती साड़ी में लिपटी हीराबाई’ का किरदार निभा रही वहीदा रहमान का अभिनय भी लाजवाब था जो हीरामन की बातों का जवाब जुबान से । नहीं आँखों से देकर वह सशक्त अभिव्यक्ति प्रदान की जिसे शब्द नहीं कह सकते थे। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ में राजकपूर और वहीदा रहमान का अभिनय लाजवाब था।
प्रश्न 2. हिंदी फ़िल्म जगत में एक सार्थक और उद्देश्यपरक फ़िल्म बनाना कठिन और जोखिम का काम है।’ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- हिंदी फ़िल्म जगत की एक सार्थक और उद्देश्यपरक फ़िल्म है तीसरी कसम, जिसका निर्माण प्रसिद्ध गीतकार शैलेंद्र ने किया। इस फ़िल्म में राजकपूर और वहीदा रहमान जैसे प्रसिद्ध सितारों का सशक्त अभिनय था। अपने जमाने के मशहूर संगीतकार शंकर जयकिशन का संगीत था जिनकी लोकप्रियता उस समय सातवें आसमान पर थी। फ़िल्म के प्रदर्शन के पहले ही इसके सभी गीत लोकप्रिय हो चुके थे। इसके बाद भी इस महान फ़िल्म को कोई न तो खरीदने वाला था और न इसके वितरक मिले। यह फ़िल्म कब आई और कब चली गई मालूम ही न पड़ा, इसलिए ऐसी फ़िल्में बनाना जोखिमपूर्ण काम है।
प्रश्न 3. ‘राजकपूर जिन्हें समीक्षक और कलामर्मज्ञ आँखों से बात करने वाला मानते हैं’ के आधार पर राजकपूर के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर- राजकपूर हिंदी फ़िल्म जगत के सशक्त अभिनेता थे। अभिनय की दुनिया में आने के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे उत्तरोत्तर सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ते गए और अपने अभिनय से नित नई ऊचाईयाँ छूते रहे। संगम फ़िल्म की अद्भुत सफलता से उत्साहित होकर उन्होंने एक साथ चार फ़िल्मों के निर्माण की घोषणा की। ये फ़िल्में सफल भी रही। इसी बीच राजकपूर अभिनीत फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ के बाद उन्हें एशिया के शोमैन के रूप में जाना जाने लगा। इनका अपना व्यक्तित्व लोगों के लिए किंवदंती बन चुका था। वे आँखों से बात करने वाले कलाकार जो हर भूमिका में जान फेंक देते थे। वे अपने रोल में इतना खो जाते थे कि उनमें राजकपूर कहीं नज़र नहीं आता था। वे सच्चे इंसान और मित्र भी थे, जिन्होंने अपने मित्र शैलेंद्र की फ़िल्म में मात्र एक रुपया पारिश्रमिक लेकर काम किया और मित्रता का आदर्श प्रस्तुत किया।