NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh स्पर्श भाग 2 Chapter 4 Manushyata पाठ 4 मनुष्यता
इस कविता के कवि मैथिलीशरण गुप्त जी हैं
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-उत्तर
प्रश्न 1. कवि ने कैसी मृत्यु को सुमृत्यु कहा है?
उत्तर- कवि ऐसी मृत्यु को सुमृत्यु मानते हैं जिसे मृतयोपरांत समाज और लोग याद करें। वह मनुष्य जो अपने और अपनों से पहले दूसरों की भलाई के विचार करता है और प्राथमिकता के साथ उन कार्यों को पूरा भी करता है । जो मनुष्य मर कर भी सदा दूसरों कि यादों में जींदा रहता है ।
प्रश्न 2. उदार व्यक्ति की पहचान कैसे हो सकती है?
उत्तर- उदार व्यक्ति की पहचान यह है कि वह परोपकार का काम करता है । वाह अपना जीवन दुसरों की भलाई में लगा देता है । वह समूचे विश्व में अपनत्व का भाव भरता है। प्राणी मात्र के प्रति उसके मन में सहानुभूति और करुणा के भाव रहते हैं।
प्रश्न 3. कवि ने दधीचि, कर्ण आदि महान व्यक्तियों का उदाहरण देकर ‘मनुष्यता’ के लिए क्या संदेश दिया है?
उत्तर- कवि ने दधीचि, कर्ण आदि महान व्यक्तियों का उदाहरण देकर सारी मनुष्यता को त्याग का संदेश दिया है। कवि के अनुसार परोपकारी व्यक्ति को अपने प्राणों का बलिदान देकर भी अपना कर्तव्य पूरा करने में संकोच नहीं करना चाहिए । जिस तरह हमारे पूर्वजों ने अपना सर्वस्व त्याग कर दूसरों की भलाई की। यही कवि ने संदेश दिया है।
प्रश्न 4. कवि ने किन पंक्तियों में यह व्यक्त किया है कि हमें गर्व-रहित जीवन व्यतीत करना चाहिए?
उत्तर- कवि ने निम्नलिखित पंक्तियों में यह व्यक्त किया है कि हमें गर्व-रहित जीवन व्यतीत करना चाहिए – “रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में, सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में।
प्रश्न 5. ‘मनुष्य मात्र बंधु है’ से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- कवि ने इस पंक्ति ‘मनुष्य मात्र बंधु है’ के माध्यम से यह स्पष्ट किया है कि इस कथन का अर्थ है कि संसार के सभी मनुष्य उस परमपिता परमेश्वर की संतान हैं। इसलिए हमें किसी से भी भेद-भाव नहीं करना चाहिए। ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना मन में रख सभी के प्रति प्रेम एवं एकता का संचार करना चाहिए।
प्रश्न 6. कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा क्यों दी है?
उत्तर- कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा इसलिए दी है क्योंकि इससे आपसी मेल-जोल बढ़ता है जिससे हमारे समस्त कार्य सरलता से पूरे हो जाते हैं। आपसी बैर-भाव और अलगाव से दूर रहते हुए आपसी प्रेम व सहानुभूति के विकास से हमारे लक्ष्य के मार्ग की सभी रुकावटें आसानी से दूर हो जाती हैं। इससे मनुष्यता की भावना को बल मिलता है। कवि के अनुसार यदि हम एक-दूसरे का साथ देंगे तो, हम प्रगति के पथ पर अग्रसर हो सकेंगे।
प्रश्न 7. व्यक्ति को किस प्रकार का जीवन व्यतीत करना चाहिए? इस कविता के आधार पर लिखिए।
उत्तर- कवि ने इस कविता के माध्यम से मनुष्य को सहानुभूति पूर्वक परोपकार करते हुए जीवन व्यतीत करने की सलाह दी है। कवि का मानना है कि मनुष्य ही एक मात्र ऐसा प्राणी है जिसके हृदय में दूसरों के हित-चिंतन के भाव होते हैं। उसे सदा मनुष्य मात्र को बंधु मानते हुए उनकी की भलाई हेतु अपना सर्वस्व त्याग करने में भी संकोच नहीं करना चाहिए। इसके अतिरिक्त उसे अपने अभीष्ट मार्ग की ओर निरंतर सहर्ष बढ़ते रहना चाहिए।
NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh स्पर्श भाग 2 Chapter 4 Manushyata पाठ 4 मनुष्यता
प्रश्न 8. ‘मनुष्यता’ कविता के माध्यम से कवि क्या संदेश देना चाहता है?
उत्तर- ‘मनुष्यता’ कविता के माध्यम से कवि यह संदेश देना चाहता हैं कि मनुष्य को प्रेम, त्याग, बलिदान और परोपकार पूर्ण जीवन व्यतीत करना चाहिए। अपने से पहले दूसरों के हित की चिंता करना मनुष्य का कर्तव्य है। यदि उसे दूसरों की भलाई के लिए अपने प्राण भी त्यागना पड़ें तब भी उसे अपने कदम पीछे न खींचते हुए सहर्ष अपने प्राणों को न्योछावर कर देना चाहिए। ऐसे सत्कर्म करने पर ही मृत्यु के बाद भी लोग उसे याद करेंगे। उसकी मृत्यु, सुमृत्यु कहलाएगी। स्वयं ऊँचा उठने के साथ-साथ दूसरों को भी ऊँचा उठाना ही मनुष्यता’ का वास्तविक अर्थ है।
NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh स्पर्श भाग 2 Chapter 4 Manushyata पाठ 4 मनुष्यता
निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए-
प्रश्न 1. सहानुभूति चाहिए, महाविभूति है यही;
वशीकृता सदैव है बनी हुई स्वयं मही।
विरुद्धवाद बुद्ध का दया-प्रवाह में बहा,
विनीत लोकवर्ग क्या न सामने झुका रहा?
उत्तर- इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहता है कि सहानुभूति मनुष्य की सबसे बड़ी पूँजी है। इससे मनुष्य महान और सर्व प्रिय बन जाता है । दूसरों के प्रति इसी सहानुभूति, दया और करुणा के कारण सारी दुनिया मनुष्य के वश में हो जाती है । महात्मा बुद्ध ने भी प्राणी मात्र के प्रति करुणा भाव रखते हुए तत्कालीन पारंपरिक मान्यताओं का विरोध किया था। उनके विरोधी भी उनकी करुणा और विनम्रता के समक्ष नतमस्तक हो गए थे । उदाहरणार्थ-फलदार पेड़ तथा संत-महात्मा हमेशा अपनी विनम्रता से ही मनुष्य जाति का उपकार करते हैं।
प्रश्न 2. रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में,
सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में।
अनाथ कौन है यहाँ? त्रिलोकनाथ साथ हैं,
दयालु दीनबंधु के बड़े विशाल हाथ हैं।
उत्तर- कवि कहते हैं कि मनुष्य को अपनी धन-संपत्ति के नशे में चूर हो कर अपने-आप को सनाथ समझकर कभी घमंड नहीं करना चाहिए। कवि कहते हैं कि पुराणों में वर्णन है समस्त मनुष्य परमपिता परमेश्वर कि संतान हैं। अतः यहाँ कोई भी अनाथ नहीं है। वे कहते हैं कि सच्चा समूची मनुष्य जाति के कल्याण के लिए मरने और जीने वाला मनुष्य स्वयं देवताओं के समान हो जाता है। वह आवश्यकता पड़ने पर दूसरों के लिए अपना शरीर भी बलिदान कर देता है। वह अपने हाथों द्वारा सबकी रक्षा और पालन करने में समर्थ हैं। अतः व्यक्ति को समृद्धि में कभी अहंकार नहीं करना चाहिए।
प्रश्न 3. चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए,
विपत्ति, विघ्न जो पड़े उन्हें ढकेलते हुए।
घटे न हेलमेल हाँ, बढ़े न भिन्नता कभी,
अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी।
उत्तर- कवि कहते हैं कि मनुष्य को अपने इच्छित मार्ग पर प्रसन्न होकर उत्साह पूर्वक आगे बढ़ाना चाहिए । मार्ग में आने वाले सभी कष्टों-रुकावटों को दूर करते हुए अपनी मंजिल की ओर बढ़ते जाना चाहिए। अलग-अलग विचारों से भरे हुए इस मार्ग पर सभी को एक मत हो कर चलते हुए आपसी भाई-चारे की भावना को बनाए रखते हुए, आपसी भेद-भाव को मिटा देना चाहिए। इसके अलावा एक जुट व सतर्क होकर इस मार्ग पर चलना चाहिए।
योग्यता विस्तार
प्रश्न 1. अपने अध्यापक की सहायता से रंतिदेव, दधीचि, कर्ण आदि पौराणिक पात्रों के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर- रंतिदेव- भारत के प्रसिद्ध राजा थे। एक बार भीषण अकाल पड़ गया। उस अकाल से तालाब और कुएँ सूख गए। फ़सलें सूख गईं। राजकोष में अनाज का भंडार समाप्त हो गया। दयालु राजा रतिदेव से अपनी प्रजा का दुख देखा न गया। आखिर प्रजा के सुख-दुख को वे अपना दुख जो समझते थे। उन्होंने प्रजा को अनाज देना शुरू कर दिया। प्रजा की भारी भरकम संख्या के आगे अनाज कम पड़ने लगा, जो बाद में समाप्त हो गया। राज-परिवार को भी अब अकाल के कारण आधा पेट खाकर गुजारा करना पड़ रहा था। ऐसी स्थिति आ गई कि राजा को भी कई दिनों से भोजन न मिला था। ऐसी स्थिति में जब राजा को कई दिनों बाद खाने को कुछ रोटियाँ मिलीं तभी एक भूखा व्यक्ति दरवाजे पर आ गया। राजा से उसकी भूख न देखी गई और उसे खिला दिया। ऐसी मान्यता है कि उनके कृत्य से प्रभावित होकर ईश्वर ने उनका भंडार अन्न-धन से भर दिया।
दधीचि- इनकी गणना भारत के परमदानी एवं ज्ञानी ऋषियों में की जाती है। दधीचि अत्यंत परोपकारी थे। वे तप में लीन रहते थे। उन्हीं दिनों देवराज इंद्र उनके पास आए। साधना पूर्ण होते ही दधीचि ने इंद्र से आने का कारण पूछा। इंद्र ने बताया कि ऋषिवर! आप तो जानते ही हैं कि देवता और दानवों में युद्ध छिड़ा हुआ है। इस युद्ध में दानव, देवों पर भारी साबित हो रहे हैं। देवगण हारने की कगार पर हैं। यदि कुछ उपाय न किया गया तो स्वर्गलोक के अलावा पृथ्वी पर भी दानवों का कब्जा हो जाएगा। ऋषि ने कहा, “देवराज इसमें मैं क्या कर सकता हूँ? मैं तो लोगों की भलाई की कामना लिए हुए तप ही कर सकता हूँ।” इंद्र ने कहा, “मुनिवर, यदि आप अपनी हड्डियाँ दे दो तो इनसे बज्र बनाकर असुरराज वृत्तासुर को पराजित किया जा सकेगा और देवगण युद्ध जीत सकेंगे। इंद्र की बातें सुनकर दधीचि ने साँस ऊपर खींची जिससे उनका शरीर निर्जीव हो गया। उनकी हड्डियों से बने वज्र से असुर मारे गए और देवताओं की विजय हुई। अपने इस अद्भुत त्याग से दधीचि का नाम अमर हो गया।
कर्ण- यह अत्यंत पराक्रमी, वीर और दानी राजकुमार था। वह कुंती का पुत्र और अर्जुन का भाई था जो सूर्य के वरदान से पैदा हुआ था। सूर्य ने उसकी रक्षा हेतु जन्मजात कवच-कुंडल प्रदान किया था जिसके कारण उसे मारना या हराना कठिन था। कर्ण इतना दानी था कि द्वार पर आए किसी व्यक्ति को खाली हाथ नहीं लौटने देता था। महाभारत युद्ध में कर्ण ने दुर्योधन का साथ दिया। कर्ण को पराजित करने के लिए कृष्ण और इंद्र ने ब्राह्मण का रूप धारण कर उससे कवच और कुंडल माँगा। कर्ण समझ गया कि यह उसे मारने के लिए रची गई एक चाल है फिर भी उसने कवच-कुंडल दान दे दिया और अपनी मृत्यु की परवाह किए बिना अपना वचन निभाया।
प्रश्न 2. ‘परोपकार’ विषय पर आधारित दो कविताओं और दो दोहों का संकलन कीजिए। उन्हें कक्षा में सुनाइए।
उत्तर- ‘परोपकार’ विषय पर आधारित कविताएँ और दोहे-
कविता- औरों को हसते देखो मनु, हँसो और सुख पाओ।
अपने सुख को विस्तृत कर लो, सबको सुखी बनाओ।
छात्र पुस्तकालय से ‘कामायनी’ लेकर कविता पढ़ें। (जयशंकर प्रसाद कृत ‘कामायनी’ से)
दोहे- यों रहीम सुख होत है, उपकारी के संग ।
बाँटन वारे को लगै, ज्यो मेहदी को रंग ।।
तरुवर फल नहिं खात है, नदी न संचै नीर।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh स्पर्श भाग 2 Chapter 4 Manushyata पाठ 4 मनुष्यता
परियोजना कार्य
प्रश्न 1. अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध’ की कविता ‘कर्मवीर’ तथा अन्य कविताओं को पढ़िए तथा कक्षा में सुनाइए।
उत्तर- देखकर बाधा विविध बहु विघ्न घबराते नहीं।
रह भरोसे भाग्य के दुख भोग पछताते नहीं।
काम कितना ही कठिन हो किंतु उकताते नहीं।
भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं।
हो गए इक आन में उनके बुरे दिन भी भले।
सब जगह सब काल में वे ही मिले फूले फले।
आज करना है जिसे करते उसे हैं आज ही।
सोचते कहते हैं जो कुछ कर दिखाते हैं वही।
हो गए इक आन में उनके बुरे दिन भी भले।
सब जगह सब काल में वे ही मिले फूले-फले ।।
(‘अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध”)
प्रश्न 2. भवानी प्रसाद मिश्र की ‘प्राणी वही प्राणी है’ कविता पढ़िए तथा दोनों कविताओं के भावों में व्यक्त हुई समानता को लिखिए।
उत्तर- भवानी प्रसाद मिश्र की कविता ‘प्राणी वही प्राणी है’ छात्र पुस्तकालय से या इंटरनेट से प्राप्त करें और दोनों कविताओं के भावों की तुलना स्वयं करें।
NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh स्पर्श भाग 2 Chapter 4 Manushyata पाठ 4 मनुष्यता