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Bachpan Chapter 2 वसंत भाग 1 वह चिड़िया जो | Vasant Bhag 1 Vah Chidiya jo

बचपन | Bachpan Chapter 2 Vasant Bhag 1 Class 6 Summary सारांश

Posted on February 23, 2023February 25, 2023 By pankajd10 1 Comment on बचपन | Bachpan Chapter 2 Vasant Bhag 1 Class 6 Summary सारांश

Table of Contents

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  • Table of Contents बचपन | Bachpan Chapter 2
    • उम्र और पहनावा
    • शनिवार, रविवार के कार्य
    • खान-पान
    • मनोहारी दृश्य
    • लेखिका का चश्मा
  • Bachpan Chapter 2 Written by Krishna Sobti

Table of Contents बचपन | Bachpan Chapter 2

  1. उम्र और पहनावा
  2. शनिवार, रविवार के कार्य
  3. खान-पान
  4. मनोहारी दृश्य
  5. लेखिका का चश्मा

Bachpan Chapter 2 : Krishna Sobti Writer

उम्र और पहनावा

 इस पाठ में लेखिका कृष्णा सोवती बच्चों को अपने बचपन के बारे में बताती हैं कि वे पिछली शताब्दी यानि 21वीं सदी में पैदा हुई थीं| इससे अब तुम्हारी दादी-नानी की उम्र की हूँ। मैं अब उम्र में काफी बड़ी हो गई हूँ। मेरे पहनावे में काफी परिवर्तन आया है। पहले में गहरे रंग के कपड़े पहनना पसंद करती थी, फ्रॉक, निकर-वॉकर, स्कर्ट और लहंगे थे अब मैं चूड़ीदार पजामी और घेरदार कुर्ते पसंद करती हूँ। मुझे अपने बचपन की फ्रॉक अभी तक याद हैं। उन दिनों फ्रॉक की जेब में रुमाल और सिर पर रंग-बिरंगे रिबन का चलन था।

शनिवार, रविवार के कार्य

 वे आगे बतातीं हैं की उन्हें अपने मोज़े और स्टॉकिंग्स अब तक याद हैं |  जब वे छोटी थीं तब उन्हें अपने मोजे खुद धोने पड़ते थे|  रविवार को सबसे पहले अपने जूते पालिश करने होते थे, जो उन्हें बेहद अच्छा लगता था। पहले के जूते अभी की तरह आरामदायक नहीं थे। नए जूतों के साथ पैरों में छाले पड़ जाते थे, इसलिए कहीं जाते समय जूतों में लगाने के लिए रूई भी रखते थे जिससे छाले न पड़ें। हर शनिवार को हमें जैतून(Olive oil) या अरंडी (Castor oil)का तेल पीना पड़ता था। इसलिए उस दिन सुबह से ही नाक में इसकी गंध आने से मितली आने लगती थी।

खान-पान

 उन दिनों घरों में ग्रामोफोन हुआ करते थे। आज की तरह रेडियो या टेलीविज़न नहीं थे। समय के बदलाव को बताने के लिए वे कहती हैं कि पहले और अब के खान-पान में बहुत अंतर आ गया है |  उस समय हम कुलफी, कचौड़ी और शहतूत या फाल्से का शरबत पिया करते थे। आज कचौड़ी – समोसा, पैटीज में और शरबत – कोक-पेप्सी में बदल गए हैं। शिमला और दिल्ली में बड़े हुए बच्चे  बैंगर्स और डेबिको रेस्तराँ की चाकलेट और पेस्ट्री मजा मजे लेकर खाते थे। वे अपने भाई बहिनों के साथ शिमला माल से ब्राउन ब्रैड लाती थी। वहाँ की चॉकलेट भी खूब मनभावनी थी। हफ्ते में एक बार चाकलेट खरीदने की छूट थी। लेखिका बड़े आनंद और धैर्य के साथ चाकलेट खाया करती थी। घर में उन्हीं के पास सबसे ज्यादा चॉकलेट रहते थे|  लेखिका को शिमला के कई फल याद आते हैं। लेखिका के बचपन के दिनों में “चना जोर गरम बाबू मैं लाया मजेदार” गाना बहुत हिट हुआ था। गर्म-गर्म मसालेदार चना जोर गरम बड़े चाव से खाती थीं|

मनोहारी दृश्य

लेखिका बचपन के शिमला को याद करते हुए कहती हैं कि शिमला रिज पर घोड़ों की सवारी का मजा, उसके सामने जाखू का पहाड़ और एक चर्च, उसकी घंटियों की आवाज़ जैसे भगवान ईशू हमसे कुछ कह रहे हों। सूर्यास्त के समय का दृश्य, बत्तियों के जलने पर रिज की रौनक और माल की दुकानों की चमक के बहुत ही मनमोहक दृश्य के क्या कहने? स्कैंडल प्वाइंट के सामने एक दुकान पर कालका शिमला ट्रेन का मॉडल बना था। पिछली सदी की तेज रफ्तार वाली गाड़ी वही थी। उस समय आकाश में उड़ते हवाई जहाज को देखने की बड़ी उत्सुकता होती थी। वहीं मॉल वाली दुकान के पास ही वह दुकान थी जिस पर मैंने पहली बार चश्मा बनवाया था। आँखों के डॉक्टर अंग्रेज थे।

लेखिका का चश्मा

Krishna Sobti Writer Bachpan Chapter 2 Vasant Bhag 1
Krishna Sobti Writer Bachpan Path 2 Vasant Bhag 1

पाठ के अंत में वे अपने परिवार के आपसी रिश्ते के बारे में कहती है, शुरू-शुरू में चश्मा लगा तो मुझे बहुत अटपटा लगा। छोटे-बड़े मुझे चश्मा लगाए देखकर कुछ न कुछ कहते थे कि यह करो वह करो। डॉक्टर साहब ने मुझे पूरा आश्वासन दिया था कि कुछ दिनों के बाद चश्मा हट जाएगा परन्तु कभी नहीं हटा। इसकी जिम्मेदार मैं स्वयं थी| मेरा चचेरा भाई मुझे चश्मा लगाए देख मुझे बहुत चिढ़ाया करता था। वह मुझे लंगूर जैसी कहकर मेरा मज़ाक बनाता था। मैंने आइने में अपनी शक्ल देखी थी कि कहीं में सचमुच ही लंगूर जैसी तो नहीं दिखती। अब चश्मा चेहरे के साथ घुल-मिल गया है। अभी भी काले फ्रेम का चश्मा और लंगूर की सूरत वाली बात अब भी याद आ जाती है। मैं सिर पर काली टोपी लगाना पसंद करती हूँ। मैंने कई रंगों की जमा कर ली हैं। अब कहाँ दुपट्टों का ओढ़ना और कहाँ सरल आसानी से पहने जाने वाली हिमाचली टोपियाँ।

Bachpan Chapter 2 Written by Krishna Sobti

कृष्णा सोबती (18 फरवरी 1925 - 25 जनवरी 2019) एक भारतीय हिंदी भाषा की कथा लेखिका और निबंधकार थीं। उन्होंने 1980 में अपने उपन्यास ज़िंदगीनामा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार जीता था और 1996 में उन्हें साहित्य अकादमी फैलोशिप से सम्मानित किया गया था, जो अकादमी का सर्वोच्च पुरस्कार है। 2017 में, उन्हें भारतीय साहित्य में उनके योगदान के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला।

Bachpan Chapter 2 Class 6 के गद्यांश की व्याख्या के लिए यहाँ जाएं : क्लिक करें

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Comment (1) on “बचपन | Bachpan Chapter 2 Vasant Bhag 1 Class 6 Summary सारांश”

  1. Yashodhara Dixit says:
    February 23, 2023 at 10:58 pm

    Hindi hamari apni bhasha hai. Es ko pad kar sakoon milta. Really nice initiative.

    Reply

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