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Chapter 3 Himalay Ki Betiyan पाठ 3 हिमालय की बेटियां

Posted on May 3, 2023May 3, 2023 By pankajd10 No Comments on Chapter 3 Himalay Ki Betiyan पाठ 3 हिमालय की बेटियां

NCERT Solutions for Class 7 Hindi

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      • Chapter 3 Himalay Ki Betiyan पाठ 3 हिमालय की बेटियां प्रश्न-उत्तर
      • पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-उत्तर
      • लेख से
      • लेख से आगे
  • ‘हिमालय के आँगन में’
      • अनुमान और कल्पना
      • भाषा की बात

Chapter 3 Himalay Ki Betiyan पाठ 3 हिमालय की बेटियां प्रश्न-उत्तर

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-उत्तर

लेख से


प्रश्न 1. नदियों को माँ मानने की परंपरा हमारे यहाँ काफ़ी पुरानी है। लेकिन लेखक नागार्जुन उन्हें और किन रूपों में देखते हैं?
उत्तर- नदियों को माँ मानने की परंपरा हमारे यहाँ काफ़ी पुरानी है। लेकिन लेखक नागार्जुन उन्हें बेटियों, प्रेयसी व बहन के रूपों में देखते हैं ।  
प्रश्न 2. सिंधु और ब्रह्मपुत्र की क्या विशेषताएँ बताई गई हैं?
उत्तर- सिंधु और ब्रह्मपुत्र- ये दो ऐसे नाम हैं जो वास्तव में स्वयं कुछ नहीं ये दयालु हिमालय के पिघले दिल की एक-एक बूंद इकट्ठा होकर बनी हैं। ये दोनों अन्य नदियों में अपवाद हैं । ये हिमालय से निकालने वाले दो महानद हैं । ये दोनों नद अपनी विशालता में अत्यंत सुंदर एवं लुभावनी लगती हैं।
प्रश्न 3. काका कालेलकर ने नदियों को लोकमाता क्यों कहा है?
उत्तर- काका कालेलकर ने नदियों को लोकमाता इसलिए कहा है क्योंकि पानी ही जीवन का आधार है। हमारे पूर्वज इस बात को समझ गए थे, इस कारण उन्होंने अपने गाँव भी नदियों के किनारे ही बसाना शुरू किए थे। इन नदियों कि अमृत धारा ने ही हमारी धरती को उर्वरा शक्ति प्रदान की है। इन्हीं कि कृपया से हमारे गाँव और वहाँ की जमीन उपज से परिपूर्ण होकर अन्नदाता बनी। ये नदियाँ मनुष्य के लिए ही नहीं, बल्कि पशु-पक्षी, पेड़-पौधों आदि के लिए बहुत जरूरी है। अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण हम इन्हें कल्याणकारी माता के समान पवित्र मानते हैं । ये नदियाँ हमें जल प्रदान कर जीवनदान देती हैं। ये नदियाँ लोगों के लिए कल्याणी एवं माता के समान पवित्र हैं। यही कारण है कि काका कालेलकर ने उन्हें लोकमाता कहा है।
प्रश्न 4. हिमालय की यात्रा में लेखक ने किन-किन की प्रशंसा की है?
उत्तर- हिमालय की यात्रा में लेखक ने नदियों, पर्वतों, बर्फीली पहाड़ियों, हरी-भरी घाटियों तथा महासागरों की भूरि-भूरि प्रशंसा की है।

NCERT Solutions for Class 7 Hindi Chapter 3 Himalay Ki Betiyan पाठ 3 हिमालय की बेटियां प्रश्न-उत्तर

लेख से आगे

प्रश्न 1. नदियों और हिमालय पर अनेक कवियों ने कविताएँ लिखी हैं। उन कविताओं का चयन कर उनकी तुलना पाठ में निहित नदियों के वर्णन से कीजिए।
उत्तर- विद्यार्थी स्वयं पुस्तकालय की सहायता से करें।
प्रश्न 2. गोपालसिंह नेपाली की कविता ‘हिमालय और हम’, रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की कविता ‘हिमालय’ तथा जयशंकर प्रसाद की कविता ‘हिमालय के आँगन में’ पढ़िए और तुलना कीजिए।
उत्तर- ‘हिमालय और हम’

गिरिराज हिमालय से भारत का कुछ ऐसा ही नाता है ।
(1)
इतनी ऊँची इसकी चोटी कि सकल धरती का ताज यही ।
पर्वत-पहाड़ से भरी धरा पर केवल पर्वतराज यही ।।
अंबर में सिर, पाताल चरण
मन इसका गंगा का बचपन
तन वरण-वरण मुख निरावरण
इसकी छाया में जो भी है, वह मस्‍तक नहीं झुकाता है ।
ग‍िरिराज हिमालय से भारत का कुछ ऐसा ही नाता है ।।
(2)
अरूणोदय की पहली लाली इसको ही चूम निखर जाती ।
फिर संध्‍या की अंतिम लाली इस पर ही झूम बिखर जाती ।।
इन शिखरों की माया ऐसी
जैसे प्रभात, संध्‍या वैसी
अमरों को फिर चिंता कैसी ?
इस धरती का हर लाल खुशी से उदय-अस्‍त अपनाता है ।
गिरिराज हिमालय से भारत का कुछ ऐसा ही नाता है ।।
(3)
हर संध्‍या को इसकी छाया सागर-सी लंबी होती है ।
हर सुबह वही फिर गंगा की चादर-सी लंबी होती है ।।
इसकी छाया में रंग गहरा
है देश हरा, प्रदेश हरा
हर मौसम है, संदेश भरा
इसका पद-तल छूने वाला वेदों की गाथा गाता है ।
गिरिराज हिमालय से भारत का कुछ ऐसा ही नाता है ।।
(4)
जैसा यह अटल, अडिग-अविचल, वैसे ही हैं भारतवासी ।
है अमर हिमालय धरती पर, तो भारतवासी अविनाशी ।।
कोई क्‍या हमको ललकारे
हम कभी न हिंसा से हारे
दु:ख देकर हमको क्‍या मारे
गंगा का जल जो भी पी ले, वह दु:ख में भी मुसकाता है ।
गिरिराज हिमालय से भारत का कुछ ऐसा ही नाता है ।।
(5)
टकराते हैं इससे बादल, तो खुद पानी हो जाते हैं ।
तूफ़ान चले आते हैं, तो ठोकर खाकर सो जाते हैं ।
जब-जब जनता को विपदा दी
तब-तब निकले लाखों गाँधी
तलवारों-सी टूटी आँधी
इसकी छाया में तूफ़ान, चिरागों से शरमाता है।
गिरिराज, हिमालय से भारत का कुछ ऐसा ही नाता है ।
– “गोपालसिंह नेपाली”

‘हिमालय के आँगन में’

हिमालय के आँगन में उसे, प्रथम किरणों का दे उपहार


उषा ने हँस अभिनंदन किया और पहनाया हीरक-हार

जगे हम, लगे जगाने विश्व, लोक में फैला फिर आलोक
व्योम-तम पुँज हुआ तब नष्ट, अखिल संसृति हो उठी अशोक

विमल वाणी ने वीणा ली, कमल कोमल कर में सप्रीत
सप्तस्वर सप्तसिंधु में उठे, छिड़ा तब मधुर साम-संगीत

बचाकर बीज रूप से सृष्टि, नाव पर झेल प्रलय का शीत
अरुण-केतन लेकर निज हाथ, वरुण-पथ पर हम बढ़े अभीत

सुना है वह दधीचि का त्याग, हमारी जातीयता विकास
पुरंदर ने पवि से है लिखा, अस्थि-युग का मेरा इतिहास

सिंधु-सा विस्तृत और अथाह, एक निर्वासित का उत्साह
दे रही अभी दिखाई भग्न, मग्न रत्नाकर में वह राह

धर्म का ले लेकर जो नाम, हुआ करती बलि कर दी बंद
हमीं ने दिया शांति-संदेश, सुखी होते देकर आनंद

विजय केवल लोहे की नहीं, धर्म की रही धरा पर धूम
भिक्षु होकर रहते सम्राट, दया दिखलाते घर-घर घूम

यवन को दिया दया का दान, चीन को मिली धर्म की दृष्टि
मिला था स्वर्ण-भूमि को रत्न, शील की सिंहल को भी सृष्टि

किसी का हमने छीना नहीं, प्रकृति का रहा पालना यहीं
हमारी जन्मभूमि थी यहीं, कहीं से हम आए थे नहीं

जातियों का उत्थान-पतन, आँधियाँ, झड़ी, प्रचंड समीर
खड़े देखा, झेला हँसते, प्रलय में पले हुए हम वीर

चरित थे पूत, भुजा में शक्ति, नम्रता रही सदा संपन्न
हृदय के गौरव में था गर्व, किसी को देख न सके विपन्न

हमारे संचय में था दान, अतिथि थे सदा हमारे देव
वचन में सत्य, हृदय में तेज, प्रतिज्ञा मे रहती थी टेव

वही है रक्त, वही है देश, वही साहस है, वैसा ज्ञान
वही है शांति, वही है शक्ति, वही हम दिव्य आर्य-संतान

जियें तो सदा इसी के लिए, यही अभिमान रहे यह हर्ष
निछावर कर दें हम सर्वस्व, हमारा प्यारा भारतवर्ष
– “जयशंकर प्रसाद”

हिमालय
मेरे नगपति! मेरे विशाल!
साकार, दिव्य गौरव विराट,
पौरुष के पूंजीभूत ज्वाल!
मेरे जननी के हिम-किरीट!
मेरे भारत के दिव्य भाल?
मेरे नगपति! मेरे विशाल!
युग-युग अजेय, निबंध, मुक्त,
युग-युग गर्वोन्नत, नित महान,
निस्सीम व्योम में तान रहा।
युग से किस महिमा का वितान?
कैसी अखंड यह चिर समाधि?
यतिवर! कैसा यह अमर ध्यान ?
तू महाशून्य में खोज रहा
किस जटिल समस्या का निदान ?
उलझन का कैसा विषम जाल?
मेरे नगपति! मेरे विशाल!
ओ, मौन, तपस्या-लीन यती।
पलभर को तो कर दृगुन्मेष।
रे ज्वालाओं से दग्ध, विकल
है तड़प रहा पद पर स्वदेश।
सुखसिंधु, पंचनद, ब्रह्मपुत्र,
गंगा, यमुना की अमिय-धारे
जिस पुष्प भूमि की ओर बही
तेरी विगलित करुणा उदार
मेरे नगपति! मेरे विशाल!
-“रामधारी सिंह दिनकर”

उपरोक्त कविताओं की तुलना यदि नागार्जुन द्वारा लिखित निबंध से करें तो हम पाते हैं कि कवि गोपाल सिंह ‘नेपाली’ ने अपनी कविता ‘हिमालय और हम’ में हिमालय कि विशालता को प्रदर्षित करते हुए उसके आँचल में फएके हुए भारत वर्ष की सुनदारता का बखान किया है, साथ ही हिमालय की विशेषताओं को बताते हुए उसे पर्वतों का राजा कहा है। वहीं ’जयशंकर प्रसाद’ ने अपनी कविता ‘हिमालय के आँगन में’ में पूरे भारत को हिमालय के आँगन के रूप में देखते हुए भारत और भारत वासियों के स्वभाव, विराट, सुंदरता आदि का वर्णन किया है। रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने अपनी कविता में हिमालय की विशालता का वर्णन किया है। इस कविता में दर्शाया गया है कि हिमालय का भारतवासियों से प्राचीन काल से अत्यंत अनिष्ठ संबंध है। भारत धरती का मुकुट हिमालय पर्वत अपनी जड़ों को पाताल तक ले जाए हुए। है। उसके धवल शिखर आकाश का चुंबन करते हैं। यहाँ कवि दिनकर ने हिमालय को प्राचीन काल से समाधि में लीन होकर किसी समस्या का हल ढूँढ़ने का प्रयास किया है। वहीं लेखक नागार्जुन ने अपने निबंध में हिमालय का वर्णन नदियों के पिता के रूप में किया है जो अपनी बेटियों के लिए परेशान है।
प्रश्न 3. यह लेख 1947 में लिखा गया था। तब से हिमालय से निकलनेवाली नदियों में क्या-क्या बदलाव आए हैं?
उत्तर- 1947 के बाद से आज तक नदियाँ उसी प्रकार हिमालय से बह रही हैं, लेकिन अब हिमालय से निकलने वाली ये पवित्र नदियाँ अपनी पवित्रता खोती जा रही हैं। अब ये नदियाँ अत्यंत प्रदूषित हो अपना आकार और शुद्धता बनाए रखपने में असमर्थ होती जा रही हैं।  
प्रश्न 4. अपने संस्कृत शिक्षक से पूछिए कि कालिदास ने हिमालय को देवात्मा क्यों कहा है?
उत्तर- हिमालय पर्वत पर देवताओं का वास माना जाता है। ऋषि-मुनि यहाँ तपस्या करते हैं इसलिए कालिदास ने हिमालय को देवात्मा कहा।

NCERT Solutions for Class 7 Hindi Chapter 3 Himalay Ki Betiyan पाठ 3 हिमालय की बेटियां प्रश्न-उत्तर

अनुमान और कल्पना

प्रश्न 1. लेखक ने हिमालय से निकलनेवाली नदियों को ममता भरी आँखों से देखते हुए उन्हें हिमालय की बेटियाँ कहा है। आप उन्हें क्या कहना चाहेंगे? नदियों की सुरक्षा के लिए कौन-कौन से कार्य हो रहे हैं? जानकारी प्राप्त करें और अपना सुझाव दें।
उत्तर- लेखक ने नदियों को हिमालय की बेटियाँ कहा है, क्योंकि वह नदियों का उद्गम स्थल है। पर हम उन्हें माँ समान ही कहना चाहेंगे, क्योंकि वे हमें तथा धरती को जल प्रदान करती हैं। हमारी प्यास बुझाने के साथ-साथ खेतों की भी प्यास बुझाती हैं। एक सच्चे माँ एवं मित्र के रूप में नदियाँ हमारी सदैव हितैषी रही हैं और उन्होंने भलाई की है।
नदियों की सुरक्षा के लिए सरकार प्रयास तो कर रही है, पर वे अपर्याप्त हैं। उनमें दिखावा अधिक है वास्तविकता कम है। अभी तक उनमें गिरने वाले कारखाने के कचरे को रोका नहीं जा सका है। फिर भी नदियों की सुरक्षा के लिए हमारे देश में कई योजनाएँ बनाई जाती रही हैं, जो निम्न हैं- नदियों के जल को प्रदूषण से बचाना, बहाव को सही दिशा देना, अधिक नहरों के निर्माण पर रोक लगाना, जल का कटाव रोकना। नदियों की सफाई की उचित व्यवस्था करना आदि है, परंतु आज इस बात की आवश्यकता है कि शीघ्रता से इन योजनाओं को लागू कर दिया जाए। नदियों के सफ़ाई की उचित व्यवस्था की जाए। उनमें कचरे फेंकने पर रोक लगाई जाए, कल-कारखानों से निकलने वाले दूषित जल, रसायन तथा शव प्रवाहित करने पर रोक लगाई जाए। अतः नदियों की पवित्रता बनाए रखने के लिए जन-चेतना जगानी होगी। सरकार को भी कड़े उपाय करने होंगे।

प्रश्न 2.
नदियों से होनेवाले लाभों के विषय में चर्चा कीजिए और इस विषय पर बीस पंक्तियों को एक निबंध लिखिए।
उत्तर- सभी विद्यार्थी मिलकर चर्चा कीजिए। चर्चा हेतु संकेत बिंदु-
1. जल प्राप्ति
2. बाँध बनाना
3. वर्षा में सहायक
4. सिंचाई में सहायक
5. आवागमन हेतु सहायक
6. बिजली बनाना।

नदियाँ हमारे जीवन का आधार हैं। बर्फीले पहाड़ों से अस्तित्व पाकर धरती के धरातल पर बहती हुई नदियाँ अपना सुधा रस रूपी जल असंख्य प्राणियों को प्रदान करती हैं। प्राणी मात्र की प्यास बुझाने के अतिरिक्त नदियाँ धरती को उपजाऊ बनाती है। आवागमन का साधन हैं। इन पर बाँध बनाकर बिजली उत्पन्न की जाती है। हमारे अधिकतर तीर्थस्थल भी नदियों के किनारे बसे हैं इसी कारण नदियाँ पूजनीय भी हैं। नदियों से हमें धरती हेतु उपजाऊ पदार्थ प्राप्त होते हैं। ये वनों को सींचती हैं। वर्षा लाने में सहायक होती हैं। अनगिनत जीव इनसे जीवन पाते हैं। नदियों के किनारे गाँवों का बसेरा पाया जाता है। गाँव के लोग अपनी छोटी-बड़ी सभी आवश्यकताएँ जैसे सिंचाई करने, पानी पीने, कपड़े धोने, नहाने, जानवरों हेतु नदियों का जल ही प्रयोग करते हैं।
अंत में यही कहा जा सकता है कि नदियाँ हमारी संस्कृति की पहचान हैं। इन्हें दूषित नहीं करना चाहिए क्योंकि हमारा जीवन इन्हीं पर निर्भर है।

NCERT Solutions for Class 7 Hindi Chapter 3 Himalay Ki Betiyan पाठ 3 हिमालय की बेटियां प्रश्न-उत्तर

भाषा की बात

प्रश्न 1.
अपनी बात कहते हुए लेखक ने अनेक समानताएँ प्रस्तुत की हैं। ऐसी तुलना से अर्थ अधिक स्पष्ट एवं सुंदर बन जाता है। उदाहरण
(क) संभ्रांत महिला की भाँति वे प्रतीत होती थीं।
(ख) माँ और दादी, मौसी और मामी की गोद की तरह उनकी धारा में डुबकियाँ लगाया करता।
• अन्य पाठों से ऐसे पाँच तुलनात्मक प्रयोग निकालकर कक्षा में सुनाइए और उन सुंदर प्रयोगों को कॉपी में भी लिखिए।
उत्तर- (अन्य पाठों से)
1. लाल किरण-सी चोंच खोल, चुगते तारक अनार के दाने।
2. उन्होंने संदूक खोलकर एक चमकती-सी चीज़ निकाली।
3. सागर की हिलोरों की भाँति उसका यह मादक स्वर गलीभर के मकानों में उस ओर तक लहराता हुआ पहुँचता और खिलौने वाला आगे बढ़ जाता है।
4. इन्हें देखकर तो ऐसा लग रहा है मानो बहुत-सी छोर्टी-छोटी बालूशाही रख दी गई हो।
5. यह स्थिति चित्रा जैसी अभिमानिनी माजोरी के लिए ही कही जाएगी।
प्रश्न 2. निर्जीव वस्तुओं को मानव-संबंधी नाम देने से निर्जीव वस्तुएँ भी मानो जीवित हो उठती हैं। लेखक ने इस पाठ में कई स्थानों पर ऐसे प्रयोग किए हैं, जैसे
(क) परंतु इस बार जब मैं हिमालय के कंधे पर चढ़ा तो वे कुछ और रूप में सामने थीं।
(ख) काका कालेलकर ने नदियों को लोकमाता कहा है।
• पाठ से इसी तरह के और उदाहरण हूँढ़िए।
उत्तर- पाठ से अन्य उदाहरण
1. संभ्रांत महिला की भाँति प्रतीत होती थी।
2. इनका उछलना और कूदना, खिलखिलाकर हँसते जाना, इनकी भाव-भंगी यह उल्लास कहाँ गायब हो जाता है।
3. माँ-बाप की गोद में नंग-धडंग होकर खेलने वाली इन बालिकाओं को रूप
4. पिता का विराट प्रेम पाकर भी अगर इनका मन अतृप्त ही है तो कौन होगा जो इनकी प्यास मिटा सकेगा।
5. बूढ़े हिमालय की गोद में बच्चियाँ बनकर ये कैसे खेला करती हैं।
6. हिमालय को ससुर और समुद्र को उसका दामाद कहने में कुछ भी झिझक नहीं होती है।
प्रश्न 3. पिछली कक्षा में आप विशेषण और उसके भेदों से परिचय प्राप्त कर चुके हैं। नीचे दिए गए विशेषण और विशेष्य (संज्ञा) का मिलान कीजिए

विशेषण विशेष्य विशेषण विशेष्य
संभ्रांतवर्षाचंचलजंगल
समतलमहिलाघनानदियाँ
मूसलाधारआँगन

उत्तर-

विशेषण विशेष्य विशेषण विशेष्य
संभ्रांतमहिलाचंचलनदियाँ
समतलआँगनघनाजंगल
मूसलाधारवर्षा

प्रश्न 4. द्वंद्व समास के दोनों पद प्रधान होते हैं। इस समास में ‘और’ शब्द का लोप हो जाता है, जैसे- राजा-रानी द्वंद्व समास है जिसका अर्थ है राजा और रानी। पाठ में कई स्थानों पर द्वंद्व समासों का प्रयोग किया गया है। इन्हें खोजकर वर्णमाला क्रम (शब्दकोश-शैली) में लिखिए।
उत्तर- छोटी – बड़ी
भाव – भंगिमा
माँ – बाप
प्रश्न 5. नदी को उलटा लिखने से दीन होता है जिसका अर्थ होता है गरीब। आप भी पाँच ऐसे शब्द लिखिए जिसे उलटा लिखने पर सार्थक शब्द बन जाए। प्रत्येक शब्द के आगे संज्ञा का नाम भी लिखिए, जैसे-नदी-दीन ( भाववाचक संज्ञा )।
उत्तर- रात-तार, जाता-ताजा, भला-लाभ, राही-हीरा, नव-वन, नमी-मीन, नशा-शान, लाल-लला
प्रश्न 6. समय के साथ भाषा बदलती है, शब्द बदलते हैं और उनके रूप बदलते हैं, जैसे-बेतवा नदी के नाम का दूसरा रूप ‘वेत्रवती’ है। नीचे दिए गए शब्दों में से ढूँढ़कर इन नामों के अन्य रूप लिखिए सतलुज, रोपड़, झेलम, चिनाब, अजमेर, बनारस
उत्तर- सतलुज- शतद्रुम
रोपड़- रूपपुर ।
झेलम- वितस्ता
चिनाब- विपाशा
अजमेर- अजयमेरु
बनारस- वाराणसी
प्रश्न 7. ‘उनके खयाल में शायद ही यह बात आ सके कि बूढ़े हिमालय की गोद में बच्चियाँ बनकर ये कैसे खेला करती हैं।’
• उपर्युक्त पंक्ति में ‘ही’ के प्रयोग की ओर ध्यान दीजिए। ‘ही’ वाला वाक्य नकारात्मक अर्थ दे रहा है। इसीलिए ‘ही’ वाले वाक्य में कही गई बात को हम ऐसे भी कह सकते हैं-उनके खयाल में शायद यह बात न आ सके।
• इसी प्रकार नकारात्मक प्रश्नवाचक वाक्य कई बार ‘नहीं’ के अर्थ में इस्तेमाल नहीं होते हैं, जैसे-महात्मा गांधी को कौन नहीं जानता? दोनों प्रकार के वाक्यों के समान तीन-तीन उदाहरण सोचिए और इस दृष्टि से उनका विश्लेषण कीजिए।
उत्तर-

वाक्यविश्लेषण
(क) बापू को कौन नहीं जानता।हर कोई बापू को जानता है।
(ख) उन्हें शायद ही इस घटना की जानकारी हो।शायद उन्हें घटना की जानकारी न हो।
(ग) वह शायद ही तुम्हें देख सके।शायद उन्हें घटना की जानकारी न हो।
(घ) वे लोग शायद ही उधर खेलें ।वे लोग शायद इधरे न खेलें।
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