पाठ 7 साथी हाथ बढ़ाना भावार्थ
वसंत भाग 1 एनसीईआरटी हिन्दी कक्षा 6
प्रस्तुत गीत साहिर लुधियानवी द्वारा लिखा गया है। यह गीत ‘नया दौर’ फिल्म के लिए लिखा गया था। यह गीत आजादी के कुछ समय बाद लिखा गया था। यह गीत सभी को मिलजुलकर काम करने की प्रेरणा देता है। इस गीत के द्वारा कवि ने बताने का प्रयास किया है कि जब भी हम मनुष्य ने मिलजुलकर काम किया है तब उसने हर मुश्किल को आसानी से पार किया है। परिश्रमी मनुष्य जब मिलकर कार्य करते हैं तो समंदर में भी राह निकल आती और पर्वत को भी पार किया जा सकता है। कवि के अनुसार सुख-दुःख का चक्र जीवन में हमेशा आता रहता है। हमें हर परिस्थिति में हमेशा अपनी मंजिल की ओर बढ़ते रहना चाहिए। दुनिया में हर बड़ा चीज़ छोटे-छोटे चीजों से मिलकर ही बना है।

गीत का भावार्थ
1. साथी हाथ बढाना
एक अकेला थक जाएगा, मिलकर बोझ उठाना
साथी हाथ बढाना।
हम मेहनत वालों ने जब भी, मिलकर कदम बढ़ाया
सागर ने रस्ता छोडा, परबत ने सीस झुकाया
फ़ौलादी हैं सीने अपने, फ़ौलादी हैं बाँहें
हम चाहें तो चट्टानों में पैदा कर दें राहें
साथी हाथ बढ़ाना
नए शब्द/कठिन शब्द –
साथी- साथ देने वाला, हाथ बढ़ाना- मदद करना, बोझ- भारी वस्तु, मेहनत वाले- परिश्रमी, कदम बढ़ाना- आगे चलना,
परबत- पर्वत, सीस- सिर, फ़ौलादी- लोहे की तरह मजबूत, सीना- छाती, चट्टान- बड़े पत्थर, पैदा कर दें राहें- रास्ता निकाल दें|
भावार्थ- कवि प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से लोगों को एक साथ मिल-जुलकर काम करने के लिए प्रेरित करता है। वे इन पंक्तियों में आगे कहते हैं कि एक अकेला व्यक्ति किसी बड़े लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कार्य करते हुए थक जाता है| वहीं सब के मिल-जुलकर कार्य करने पर उसी बड़े लक्ष्य को आसानी से प्राप्त कर लेते हैं और कोई थकता भी नहीं है। वे आगे कहते हैं कि हम परिश्रमी लोगों ने जब-जब भी एक साथ मिलकर काम किया है तब-तब समुद्र के समान विशाल और पहाड़ के सामान बड़ी रुकावटों को भी आसानी से पार कर लेते हैं। कवि आगे कहते हैं कि हमारी बाहें और सीने फौलाद के सामान मजबूत हैं, अगर हम ठान लें तो अपने रास्ते की सभी कठिनाइयों को, मुसीबतों को दूर करने में सक्षम हैं|
अर्थात सभी के द्वारा साथ मिलकर काम करने पर हम आसानी से अपने बड़े से बड़े लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।
2. मेहनत अपनी लेख की रेखा, मेहनत से क्या डरना
कल गैरों की खातिर की, अब अपनी खातिर करना
अपना दुःख भी एक है साथी, अपना सुख भी एक
अपनी मंजिल सच की मंजिल, अपना रास्ता नेक
साथी हाथ बढ़ाना
नए शब्द/कठिन शब्द-
लेख की रेखा- भाग्य की रेखा, गैरों- परायों, दूसरों(अंग्रेजों), खातिर- के लिए, मंजिल- लक्ष्य, नेक- भलाई|
भावार्थ- कवि कहते हैं कि मेहनत तो हमारे लिए हमारे हाथ की रेखाओं के सामान हैं, मिनट करने से किस प्रकार का डर। हमने अब तक दूसरों (अंग्रेजों) के लिए जी तोड़ मेहनत की है परंतु अब समय है की हम वही मेहनत हमें अपना भविष्य बनाने के लिए करनी है करते थे अब परिश्रम करने की बारी अपने लिए आई है। साथियो! हम सब के सुख और दुःख एक सामान हैं और हमारी मंजिल का रास्ता अच्छाई व सच का है| इसलिए साथियो एक साथ मिलकर आगे बढ़ो| अर्थात् हम मेहनत करने वाले लोग हैं, कल तक हमारी मेहनत का फायदा दूसरे उठाते थे अब हमें आजाद भारत के निर्माण के लिए मिल-जुलकर काम करना है। और अपने सुख-दुःख के साथ सच्चाई व नेकी के रास्ते पर चलते हुए मापनी मंजिल को प्राप्त करेंगे।
3. एक से एक मिले तो कतरा, बन जाता है दरिया
एक से एक मिले तो ज़र्रा, बन जाता है सेहरा
एक से एक मिले तो राई, बन सकती है पर्वत
एक से एक मिले तो इंसाँ, बस में कर ले किस्मत
साथी हाथ बढ़ाना
नए शब्द/कठिन शब्द-
दरिया- नदी, ज़र्रा- कण, सेहरा- रेगिस्तान, राई- सरसों,
भावार्थ- उपरोक्त पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि जब एक-एक बूंद आपस में मिलती है तब विशाल समंदर बन जाता है। इसी प्रकार छोटे-छोटे अनेक बालू के कणों के मिलजाने से बड़े-बड़े रेगिस्तान बन जाते हैं। छोटे-छोटे राई के दाने एक साथ मिलजाने पर पर्वत बना देते हैं। यदि इसी तरह सभी मनुष्य एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करें तो अपने भाग्य को भी बदल सकते हैं। अर्थात एक साथ मिलकर काम करने से बड़े से बड़े लक्ष्य को भी प्राप्त किया जा सकता है|
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