एकांकी ऐसे-ऐसे का सारांश
लेखक विष्णु प्रभाकर ने अपने एकांकी "ऐसे-ऐसे" के माध्यम से उन शरारती बच्चों के बारे में बताया हे जो समय पर अपना गृहकार्य न कर स्कूल न जाने के लिए बहाने ढूढ़ते हैं। इस नाटक में लेखक ने मोहन नमक एक शरारती बच्चे को अपना मुख्य पात्र बनाया है जिसके कारण सारा परिवार परेशान हो जाता है-
पर्दा खुलने पर मोहन के घर के बैडरूम के दृश्य जिसमें मोहन एक दिवान पर लेटा अपना पेट पकड़ कर बार-बार कराह रहा है। बगल में माँ बैठी गरम पानी से पेट सेंक रही है। वह परेशान है और मोहन के पिता से पूछती है कि कहीं मोहन ने कोई उलटी-सीधी चीज तो नहीं खा ली थी। पिता बताते हैं कि मोहन ने केवल केला और संतरा खाया था। दफ़्तर में तो ठीक था, बस अड्डे पहुँचने पर अचानक से बोला-पेट में ऐसे-ऐसे हो रहा है। पिता डॉक्टर को बुला चुके हैं जो अभी ता नहीं आया है|
माँ बहुत चिंतित हो पिता से पूछती है कि डॉक्टर अभी तक क्यों नहीं आया। इस बीच माँ बताती है कि उसने मोहन को हींग, चूरन, पिपरमेंट सब दे दिया परन्तु इसका कोई लाभ नहीं हुआ। तभी फोन की घंटी बजती है पिता बात करने के बाद बताते हैं कि डॉक्टर आ रहे हैं।
परन्तु उससे पहले पडोसी दीनानाथ वैद्यजी को लेकरआते हैं| वैद्यजी मोहन की नाड़ी छूकर बताते हैं कि शरीर में वायु (गैस) बढ़ने के कारण ऐसा हो रहा है। वैद्यजी कब्ज कहकर कुछ पुड़िया खाने के लिए देते हैं और कहते हैं कि इसे खाने से मोहन ठीक हो जाएगा। फिर वे पाँच रुपये लेकर चले जाते हैं|वैद्यजी के जाने के कुछ समय बाद ही डॉक्टर आते हैं।
डॉक्टर मोहन की जीभ और पेट देखकर बताते हैं कि उसे बदहजमी हो गई है| वे भी अपनी फीस दस रुपये लेकर दवाई भेजने की बात करते हुए निकल जाते हैं। तब मोहन की पड़ोसिन आती है। वह मोहन की माँ को तरह-तरह की नई बीमारियों के बारे में बताती है। तभी कहीं से सूचना पाकर मोहन के मास्टरजी भी उसे देखने आ पहुँचते हैं। मास्टरजी मोहन को देखते ही समझ जाते हैं कि उसने गृहकार्य पूरा नहीं किया है इसलिए बीमारी का बहाना बना रहा है। तब मास्टरजी मोहन को गृहकार्य करने के लिए दो-दिन का समय देते हैं और सभी को बताते हैं कि मोहन ने छुट्टियों में महीने भर मस्ती की जिसके कारण उसका गृहकार्य पूरा नहीं हो पाया। अब वो बीमारी का बहाना बना रहा है। मास्टरजी की बात सुनकर सभी दंग रह जाते हैं। पिताजी के हाथ से दवाई की शीशी गिरकर टूट जाती है। सभी लोग हँस पड़ते हैं।